पूर्णिया: राजेंद्र बाल उद्यान के प्रांगण में गुरुवार को प्रकृति पर्व सरहुल महोत्सव धूमधाम से मनाया गया.प्रकृति पर्व पर आदिवासी समुदाय के लोगों ने वृक्ष की पूजा-अर्चना की.पूजा का आरंभ नेपाल से आए सरना नृत्य मंडली अपने पारंपरिक वेश-भूषा, डिग्गा एवं गाजे-बाजे के साथ झूमते, सरहुल गीत गाते हुए सरहुल स्थल पर पहुंचा इसके बाद पूजा प्रारंभ की गई.
प्रकृति से जुड़ाव का त्योहार
मान्यता है कि इस पर्व में खास कर प्रकृति की पूजा की जाती है ताकि लोग प्रकृति से जुड़े रहें.पूजा नेग विधि एवं इसके महत्व के बारे में बताते हुए पंडित गुनेश्वर उरांव ने बताया कि यह पर्व प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के तृतीय शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है.पर्व में प्रकृति से जुड़े एवं सदियों तक टिके रहने वाले वृक्ष के फूलों का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि इस वर्ष वृक्ष से प्रकृति शक्ति मां सरना वाला आयो अवतरित हुई.पर्व में वृक्ष को केंद्र में रखकर इसके फूल को चढ़ाया जाता है. साथ ही प्रकृति के संतुलन को टिकाए रखने के लिए दो मुर्गी और एक मुर्गा की बलि दी जाती है. प्रकृति में जितने भी फल फूल, चर चराचर जीव जंतु की स्मृति में चला आयो को काली मुर्गी का चढावा दिया जाता है.वहीं ब्रह्मांड में प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए अर्थात किसी भी तरह का अहित नहीं हो उसके लिए उजली मुर्गी का चढ़ावा दिया जाता है.इसके के साथ ही हिन्दी नव वर्ष भी प्रारंभ हो जाता है.
पारंपरिक नृत्य ने किया मंत्रमुग्ध
वही पर्व को लेकर नेपाल, बंगाल, झारखंड़, भागलपुर सहित अन्य जगहों से नृत्य मंडली को मंगवाया गया था.जिनके द्वारा बारी-बारी से अपने पारंपरिेक नृत्य की प्रस्तुत कि गई. जिसे देखकर उपस्थित लोग मनमुग्ध हो गए. समारोह में आए लोगों ने एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर पर्व की शुभकामनाएं दी.इस मौके पर सड़क के दोनों किनारे मिठाई और खिलौने की दुकानें लगाई गई थी.जिस पर ग्राहक की काफी भीड़ लगी हुई थी.
समारोह को सफल बनाने में पूजा समिति के अध्यक्ष मायाराम उरांव, उपाध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद उरांव, सचिव उमेश उरांव, उपसचिव श्याम सुन्दर उरांव, कोषाध्यक्ष महेश उरांव, उप कोषाध्यक्ष मुकेश कुजूर, महामंत्री बिरेंद्र उरांव, नवीन लकड़ा, नाथू उरांव, रावण उरांव, संगठन मंत्री, विक्रम तिर्की, वरूण कुमार, जितेन्द्र टुडू, कामेश्वर मिंज, रविशंकर हेम्ब्रम, श्याम तिर्की, अजय उरांव, रिचर्ड मिंज, जेम्स बारला, सूर्यनारायण उरांव, हरिलाल उरांव, पृथ्वी चंद हेम्ब्रम, हरि कुजू्रर, उमाशंकर उरांव, लाल मोहन उरांव, प्रीतम लकड़ा, मनोज बाड़ा, सरयुग उरांव, विनोद कुजूर सहित आदि तत्पर थे.
Author: sanvaadsarthi
संपादक