प्रेतशिला:पितृपक्ष के तीसरे दिन अकाल मृत्यु वाले पूर्वजों को दिया जाता है पिंडदान, भटकती आत्मा को तुरंत मिलता है मुक्ति

पितृपक्ष: गया को मोक्ष धाम कहा जाता है, क्योंकि यहां पितरों को मोक्ष मिलता है. पितृपक्ष में पितरों की मुक्ति को लेकर काफी संख्या में देश-विदेश से लोग यहां आकर पिंडदान, श्राद्ध कर्म करते हैं. जहां एक, तीन, पांच, सात, 15 एवं 17 दिनों का कर्मकांड किया जाता है. कर्मकांड यहां स्थित 54 वेदियों पर किया जाता है.
इन वेदियों की अपनी-अपनी मान्यताएं भी हैं. इसी क्रम में पितृपक्ष के तीसरे दिन प्रेतशिला पिंड वेदी पर कर्मकांड करने की मान्यता है. यह वेदी गया धाम के पश्चिमी और उत्तर दिशा में स्थित है. इस पर्वत की चोटी पर प्रेतशिला नाम की वेदी है, जहां परंपरा के अनुसार पिंड दानी श्रद्धापूर्वक सत्तू में काला तिल मिलाकर हवा में उड़ाते हैं.

भटकते पितरों की आत्मा को मिलती है मुक्ति
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रेतशिला पर श्राद्ध करने से प्रेत योनि में भटकते पितरों की आत्मा को तुरंत मुक्ति मिल जाती है. यहां एक बड़ी चट्टान है, जिसका संबंध परलोक से माना गया है. यहां की मान्यताओं और गरुड़ पुराण की कथा के अनुसार, इस शिला की दरारों से पितरों का आगमन होता है और वह पिंड ग्रहण करके अपने लोक वापस लौट जाते हैं. इस पर्वत की चोटी पर स्थित प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध करने से भूत-प्रेत योनि में भटकती आत्माओं को मुक्ति मिल जाती है.

अकाल मृत्यु वाले पूर्वजों को मिलती है मुक्ति

कहा जाता है कि अकाल मृत्‍यु वाले पूर्वजों का प्रेतशिला की वेदी पर श्राद्ध और पिंडदान करने का विशेष महत्व है. पिंडदान के बाद यहां परिजन ताली बजाकर ठहाका लगाते हैं. इसके पीछे मान्यता है कि अकाल मृत्यु के कारण किसी की मौत होती है तो उनके घर में लोग रोते हैं, लेकिन प्रेतशिला में पिंडदान करने से ऐसे पितरों को मोक्ष मिलता है. यही कारण है कि पिंडदान के बाद परिजन तीन बार ताली बजाकर ठहाका लगाकर खुशी का इजहार करते हैं.

यहां 34 पिंडों का होता है दान
धामी पांडा शिवा पांडे बताते हैं कि यहां अकाल मृत्यु से जिनकी भी मौतें होती हैं, उन पितरों का पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. यहां 365 दिन पिंडदान का विधान है. यहां दो स्थान है, एक ब्रह्म कुंड और दूसरा प्रेतशिला. पिंडदान करने वाले पिंड दानी 34 पिंड बनाते हैं. इसे दोनों स्थानों पर विसर्जित किया जाता है.

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Author: sanvaadsarthi

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