Big Hanuman Temple in Prayagraj: प्रयागराज में महाकुंभ लगा है.जहां अमृत स्नान करने देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं.इस महाकुंभ में आप भी संगम पर अमृत स्नान करने जा रहे हैं तो संगम स्थल के पास ही एक ऐसा हनुमान जी का मंदिर है, जिसके दर्शन के बिना संगम का अमृत स्नान अधूरा माना जाता है.आखिर क्यों है यह मंदिर इतना महत्वपूर्ण और क्या है इसकी विशेषता? आईए जानते हैं बड़े हनुमान जी से जुड़े तमाम रहस्य.
व्यापारी लाया था मूर्ति
प्राचीन कहानी के अनुसार सैकड़ो वर्ष पूर्व एक धनी व्यापारी हनुमान जी की इस मूर्ति को लेकर जा रहा था.तभी उसकी नाव संगम के तट पर पहुंची और हनुमान जी की मूर्ति वहां गिर गई. इस व्यापारी ने हनुमान जी की मूर्ति को उठाने की तमाम कोशिशें की. लेकिन कोई सफलता नहीं मिली.तब उसे हनुमान जी ने एक रात सपना दिया और कहा कि इसे संगम पर ही रखना चाहते हैं.
कई नामों से विख्यात
प्रयागराज में संगम के तट पर स्थित हनुमान जी को कई नाम से भी जाना जाता है. इन्हें बड़े हनुमान जी,किले वाले हनुमान जी, लेटे हुए हनुमान जी और गढ़ वाले हनुमान जी भी कहा जाता है.यहां जमीन से नीचे हनुमान जी की मूर्ति लेते हुए मुद्रा में है तथा हनुमान जी अपनी एक भुजा में अहिरावण और दूसरी भुजा से दूसरे राक्षस को पकड़े हुए हैं. कहते हैं कि यह एकमात्र मंदिर है जहां हनुमान जी लेटे हुए हैं.
संगम का जल हनुमान जी का करता है स्पर्श
मूर्ति की लंबाई लगभग 20 फीट की है.मंगलवार और शनिवार के दिन यहां हनुमान भक्तों की काफी भी उमड़ती है. मान्यता है कि संगम के पानी भगवान हनुमान जी का स्पर्श करता है और उसके बाद गंगा का पानी उतर जाता है.यह हनुमान जी का सिद्ध मंदिर है.कहते हैं कि हनुमान जी अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते हैं.यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है.हर संकट से मुक्ति मिलती है.
अकबर भी नहीं हिला सके मुर्ति
चर्चा अनुसार 1582 में अकबर अपने साम्राज्य को विस्तार देने में जब व्यस्त था तो वह इधर भी आया था. मगध,अवध,बंगाल सहित पूर्वी भारत में चलने वाले विद्रोह को शांत करने के लिए अकबर ने यहां एक किले का निर्माण करवाया. जहां पर अकबर हनुमान जी को ले जाना चाहते थे.उसने मूर्ति को हटाने की कोशिश की.लेकिन मूर्ति अपने स्थान से हिला भी नहीं.कहते हैं कि इस समय हनुमान जी ने अकबर को सपना दिया.जिसके बाद अकबर ने इस काम को रोक दिया और हनुमान जी से अपनी हार मान ली और तौबा कर ली.
Author: sanvaadsarthi
संपादक